दीर्घस्थायी जैविक प्रदूषकों पर प्रतिबंध


  • 7 अक्टूबर, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘दीर्घस्थायी जैविक प्रदूषकों (POPs : Persistent Organic Pollutents) से संबंधित स्टॉकहोत अभिसमय के अंतर्गत सूचीबद्ध सात रसायनों को प्रतिबंधित करने के मंजूरी प्रदान की।
  • ये सात रसायन हैं क्लोरडीकोन, हेक्सा ब्रोमोबाइफेनिल, हेक्सा ब्रोमोडाइपेâनिल ईथर एवं हेप्टा-ब्रोमोडाइफेनिल ईथर, टेट्रा, ब्रोमोडाइपेâनिल ईथर एवं पेंटाब्रोमो-डाइफेनिल ईथर, पेंटाक्लोरोबेंजीन, हेक्साब्रोमाइ क्लोडोडीकन और हेक्साक्लोरोब्यूडिएन।
  • ध्यातव्य है कि 5 मार्च, 2018 को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित दीर्घस्थायी जैविक प्रदूषकों के विनियमन संबंधी नियमों में उक्त सात रसायनों के उत्पादन, व्यापार, प्रयोग, आयात एवं निर्यात को प्रतिबंधित किया गया है।
इन्हें भी जानें

  • दीर्घकाल तक वायुमंडल में बने रहने वाले रासायनिक प्रदूषक पदार्थों के हानिकारक प्रभाव से मनुष्य एवं पर्यावरण को बचाने के लिए ‘स्टॉकहोम अभिसमय’ एक वैश्विक संधि है।
  • यह अभिसमय 22 मई, 2002 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में अंगीकृत और 17 मई, 2004 को प्रवर्तित हुआ।
  • 13 जनवरी, 2006 को भारत द्वारा स्टॉकहोम अभिसमय के अनुच्छेद 25(4) के अंतर्गत इसका अनुसमर्थन किया गया।
  • दीर्घस्थायी जैविक प्रदूषक कार्बन आधारित रासायनिक पदार्थ होते हैं जो रासायनिक एवं भौतिक विशेषताओं के एक विशेष संयोजन हैं।
  • पर्यावरण में इनका विस्तार मिट्टी, जल एवं वायु के माध्यम से होता है।
  • यह प्रदूषक जीव समुदाय के वसीय ऊतकों में संचित होते हैं।
  • खाद्य शृंखला के उच्च स्तरों में इनकी सान्द्रता अधिक होती है।
  • मनुष्यों पर इन प्रदूषकों के हानिकारक प्रभावों में शामिल हैं प्रतिरक्षा प्रणाली एवं जनन संबंधी विकार, कैंसर, एजर्ली, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति इत्यादि।






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