प्रतिदिन 10 प्रश्न और उत्तर (Q & A),(28-09-2022)

प्रश्न-


1. निम्नलिखित में से किस स्थान पर नवपाषाण स्तर पर गेहूँ एवं जौ की खेती के सर्वप्रथम प्रमाण मिलते हैं?
(a) रंगपुर (b) लोथल
(c) मेहरगढ़ (d) कोलडिहवा

2. मोहनजोदड़ों से प्राप्त पशुपति की मुहर पर निम्न में कौन अंकित नहीं है?
(a) हाथी (b) गैण्डा
(c) बाघ (d) बैल

3. ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार कहाँ के शासक सम्राट की उपाधि धारण करते थे?
(a) उत्तरकुरु (b) उत्तरमद्र
(c) भोज (d) प्राच्य

4. जैन आगम किस भाषा में लिखे गये हैं -
(a) पाली (b) प्राकृत
(c) मागधी (d) अवधी

5. स्तूप एवं चैत्य निर्माण के निर्देश तथा इनमें स्थापित करने के लिए बुद्ध के अवशेषों को लेकर विवाद का विवरण सर्वप्रथम मिलता है -
(a) मिलिन्दपन्ह में (b) मज्झिम निकाय में
(c) महापरिनिब्बान सुत्त में (d) ज्ञानप्रस्थान सूत्र में

6. चाणक्य के अर्थशास्त्र के अनुसार सेना में किस वर्ण के लोग सम्मिलित होने चाहिए -
(a) क्षत्रिय
(b) क्षत्रिय और शूद्र
(c) क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य
(d) क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य और ब्राह्मण

7. अजंता की कला को इनमें से किसने प्रश्रय (सहायता) दिया?
(a) चालुक्य (b) पल्लव
(c) वाकाटक (d) गंगा

8. सुल्तान इल्तुतमिश के शासनकाल में न्याय चाहने वाले व्यक्ति को पहनना पड़ता था-
(a) काला वस्त्र  (b) लाल वस्त्र
(c) श्वेत वस्त्र (d) हरा वस्त्र

9. बिहार पर बख्तियार खिलजी के हमले का पहला विवरण प्राप्त हुआ।
(a) तारीख-ए-हिंद से
(b) तबकात-ए-नासिरी से
(c) ताज-उल-मासिर से
(d) तारीख-ए-मुबारक शाही से
10. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए–
1. `बीजक' सन्त दादू दयाल के उपदेशों का एक संकलन है।
2. पुष्टि मार्ग के दर्शन को मध्वाचार्य ने प्रतिपादित किया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/ से सही है/ हैं?
(a) केवल 1 (b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों (d)न तो 1 और न ही 2

 


उत्तर-



1. (C): सिन्ध और बलूचिस्तान की सीमा पर कच्छ मैदान में बोलन नदी के किनारे मेहरगढ़ नामक स्थल से कृषि का पहला स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त हुआ है। इस स्थल का उत्खनन वर्ष 1977 से चल रहा है। लगभग ईसा पूर्व 7000 के आसपास के संदर्भ में कृषिजन्य गेहूँ और जौ की विभिन्न किस्में प्राप्त हुई हैं। गेहूँ, जौ का यह कृषि क्षेत्र आगे यूरोप में दक्षिणी-पूर्वी यूनान और बाल्कन देशों तक पैâला हुआ था। मेहरगढ़ से पाषाण संस्कृति से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक अवशेष प्राप्त हुए है। नवीनतम शोधों के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में स्थित लहुरादेव से प्राप्त होता है जहाँ से 9000 ई.पू. से 8000 ई.पू. के मध्य के चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
नोट–यदि मेहरगढ़ और लहुरादेव दोनों विकल्प में हो तो लहुरादेव उचित विकल्प होगा।

2. (D): मोहनजोदड़ों से प्राप्त ‘पशुपति शिव’ की मुहर विशेष प्रसिद्ध है। इस मुहर में एक त्रिमुखी पुरुष को एक चौकी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाया गया है। उसके सिर में सींग है तथा कलाई से कन्धे तक उनकी दोनोंं भुजाएँ चूडि़यों से लदी हुई हैं। मूर्ति के दाहिनी ओर एक हाथी तथा एक बाघ और बाई ओर एक गैंडा एवं एक भैंसा खड़ा हुआ है। चौकी के नीचे दो हिरण खड़े हुए दिखाए गये हैं जिनमें से एक की आकृति खण्डित है। एक अन्य मुहर में नर एवं नारियों की कुल मिलाकर सात आकृतियाँ अंकित हैं। मोहनजोदड़ों और लोथल से नाव की आकृति अंकित एक-एक मुहरें मिली हैं। एक मुहर में पीपल की एक शाखा से एक शृंगी दो पशुओं को निकलते हुए दिखाया गया है। मुहरों के अतिरिक्त मोहनजोदड़ो एवं हड्प्पा की खुदायी से कई ताम्र पट्टिकाएँ मिली हैं जिन पर एक तरफ मुद्रा लेख खुदा हुआ है तथा दूसरी ओर सैन्धव मुहरों पर मिलने वाले प्रतीक बने हुए हैं।

3. (D): प्राच्य पूर्व में है। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार पूर्व दिशा (मगध, कलिंग एवं बंग आदि) के जो राजा हैं, उनका साम्राज्य के लिए अभिषेक होता है और वे ‘सम्राट’ कहलाते हैं। दक्षिण दिशा में जो सात्वत (यादव) राज्य है, वहाँ का शासन ‘भोज्य’ है और उनके शासक ‘भोज’ कहलाते हैं। पश्चिम दिशा (सौराष्ट्र, कच्छ, सौवीर, आदि) का शासन स्वराज है और उनके शासक स्वराष्ट्र कहलाते हैं। उत्तर दिशा में हिमालय के क्षेत्र में (उत्तर कुरु उत्तर मद्र आदि) जो राज्य हैं, वहाँ वैराज्य प्रणाली है और वहाँ के शासक ‘विराट’ कहलाते हैं। मध्य देश (कुरु, पंचाल कौशल आदि के राज्यों के शासक ‘राजा’ कहे जाते हैं। इस प्रकार ऐतरेय ब्राह्मण में, साम्राज्य, भोज्य, स्वराज, वैराज्य और राज्य इन पांच प्रकार की प्रणालियों का उल्लेख है। सम्राट वे शासक थे जो वंशक्रमानुगत होते हुए अपनी शक्ति के विस्तार के लिए अन्य राज्यों का मूलोच्छेद करने को तत्पर रहते थे। जरासंध आदि मगध सम्राट इसी प्रकार के थे।

4. (B): जैन आगम की भाषा प्राकृत है। यद्यपि कुछ जैन साहित्य संस्कृत में भी लिखे हुए मिलते हैं। जैन साहित्य जिसे आगम कहा जाता है इसमें 12 अंग, 12 उपांग, १० प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र नन्दि सूत्र, अनुयोग और मूल सूत्रों की गणना होती है। यह आगम उस समय लिपिबद्ध नहीं किया गया एवं गुरु-शिष्य परंपरा से मौखिक रूप में प्रचलित रहा और यही उसके श्रुतांग कहलाने की सार्थकता है। आगमों की रचना सम्भवत: श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी। इनकी कुल संख्या 12 है। (1) आचारांग सूत्र, (2) सूर्य कडगं, (3) थांगण, (4) समवायंग, (5) भगवती सूत्र, (6) न्याय धम्मकहाओ, (7) उवासगदसाओ, (8) अन्तगडदसाओ, (9) अगुत्तरोवताइय (10) पव्हावर्गारणआइं (11) विवागसुयं (12) दिट्ठिताय।

5. (C): विभिन्न स्थानों का भ्रमण करते हुए बुद्ध मल्लों की राजधानी पावा पहुँचे। यहाँ चुन्द नामक लुहार की आम्रवाटिका में ठहरे। उसने बुद्ध को भोजन दिया, जिससे उन्हें रक्तातिसार हो गया और भयानक पीड़ा उत्पन्न हुई। इस वेदना को सहन करते हुए वे कुशीनारा पहुँचे, यही 483 ई.पू. में 80 वर्ष की आयु में उन्होंने प्राण त्याग दिये। इसे बौद्ध ग्रन्थों में `महापरिनिर्वाण' कहा गया है। मल्लों ने अत्यन्त सम्मानपूर्वक उनका अन्त्येष्टि संस्कार किया। उनकी शरीर धातु के आठ भाग किये गये तथा प्रत्येक पर स्तूप बनवाये गये। महापरिनिब्बान सुत्त में बुद्ध की शरीर-धातु के दावेदारों के नाम इस प्रकार मिलते हैं─
1. पावा तथा कुशीनारा के मल्ल।
2. कपिलवस्तु के शाक्य
3. वैशाली के लिच्छवि
4. अलकप्प के बुलि
5. रामगाम के कोलिय
6. पिप्पलिवन के मोरिय
7. वेठद्वीप के ब्राह्मण
8. मगधराज अजातशत्रु।

6. (D): चाणक्य के अर्थशास्त्र के अनुसार सेना में क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य और ब्राह्मण अर्थात् चारों वर्णों के लोगों को सम्मिलित किया जाता था। इसी कारण सम्भवत: जस्टिन ने चन्द्रगुप्त की सेना को डाकुओं का गिरोह कहा था। सैनिक भर्ती के लिए भारतवर्ष का पश्चिमी प्रदेश अधिक सुविधाजनक था। यहां अनेक आयुधजीवी जातियां रहती थीं। चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने इसी प्रदेश के लोगों को अपनी सेना में भर्ती किया था।

7. (C): अजंता की कला को वाकाटकों ने प्रश्रय (सहायता) दिया था। वे तत्कालीन शक्तिशाली गुप्त वंश के समकालीन थे। वाकाटक नरेश प्रवरसेन प्रथम ने चार अश्वमेध यज्ञ किए थे। बौद्ध गुहा मंदिरों में अजंता (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) तथा बाघ (ग्वालियर के समीप, मध्यप्रदेश) की गुफाएं महत्वपूर्ण हैं। अजंता गुफाओं का पता जेम्स महोदय ने लगाया। यहाँ कुल २९ गुफाएँ हैं जिनमें ५ चैत्य हैं। सभी गुफाओं में चित्र बने थे किंतु गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 के चित्र ही अवशिष्ट हैं।

8. (B): सुल्तान इल्तुतमिश के शासन काल में न्याय चाहने वाले व्यक्ति को लाल वस्त्र पहनकर सुल्तान तथा जनता के समक्ष उपस्थित होना पड़ता था। न्याय के लिए इल्तुतमिश ने राजधानी तथा सभी प्रमुख नगरों में काजी तथा अमीरे दाद नियुक्त किये। इनके निर्णयों के विरुद्ध लोग प्रधान काजी की अदालत में अपने मुकदमें पेश करते थे। अन्तिम पैâसला उसी के द्वारा किया जाता था। न्याय व्यवस्था में सुल्तान सर्वोपरि था। इल्तुतमिश की न्याय व्यवस्था के सम्बन्ध में इब्नबतूता लिखता है सुल्तान के महल के सम्मुख संगमरमर के दो सिंह बने हुए थे जिनके गले में घंटियाँ लटकी हुई थी। पीडि़त व्यक्ति इन घंटियों को बजाता था उसकी फरियाद सुनकर तुरन्त न्याय की व्यवस्था की जाती थी।

9. (B): बिहार पर बख्तियार खिलजी के हमले का पहला विवरण तबकात-ए-नासिरी से प्राप्त हुआ है। तबकात-ए-नासिरी फारसी इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज द्वारा रचित पुस्तक हैं इसमें मुहम्मद गोरी की भारत विजय तथा तुर्की सल्तनत के आरंभिक इतिहास की लगभग 1260 ई. तक की जानकारी मिलती है। मिनहाज ने अपनी इस कृति को गुलाम वंश के शासक नासिरूद्दीन महमूद को समर्पित किया था। उस समय मिनहाज दिल्ली का मुख्य काजी था। इस पुस्तक में मिनहाजुद्दीन सिराज ने सर्वप्रथम बख्तियार खिलजी द्वारा बिहार पर आक्रमण तथा नालंदा विश्वविद्यालय को जलाए जाने और हजारों बौद्ध विद्वानों एवं भिक्षुओं को जलाकर मारने का विवरण दिया है, क्योंकि वह बौद्ध धर्म के विस्तार का विरोधी था।

10. (D): `बीजक' संत कबीर के उपदेशों का संग्रह ग्रंथ है। पुष्टि मार्ग के दर्शन का प्रतिपादन वैष्णव संत वल्लभाचार्य ने किया था।

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